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गळगचिया (5) / कन्हैया लाल सेठिया
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09:48, 4 मार्च 2017
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<poem>
सूई,
तूं फूलां रो काळजो छेक‘र कांई काढ्यो?
डोरो तो हार में ही रहग्यो
पण तूं तो जीत में रै’र ही नागी-बूची ही रही।
</poem>
आशीष पुरोहित
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