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इस मिलन के पुण्य क्षण में
मैं बनूँगा दीप, तुम जलना, अमर हो जायँगे हम॥3॥
 
मैं लिखूँगा गीत-1
 
मैं लिखूँगा गीत, तुम गाना, अमर हो जायँगे हम।
आ गया सावन सुहावन, सघन घन छाए गगन में,
ग्रीष्म की जलती धरणि के पुलक तन में, मोद मन में।
मेघ गर्जे, सुन धरा का मन हरा अब हो रहा है,
आज सुख की नींद में अँगड़ाइयाँ तरु ले रहा है।
खेलती है स्वर्ग की सौदामिनी छिप कर घनों में
झर रही बूँदें, अमृत-कण प्रकृति के प्यासे कणों में
लहलहाते इन क्षणों में
मैं बनूँगा कूल, तुम बहना, अमर हो जायँगे हम॥1॥
 
जा रही बरसात अपने बादलों को साथ लेकर,
ग्रीष्म के अभिशप्त जग को सरस जीवन दान देकर।
आ रही है शरद ले मधु हास और विकास नूतन,
मुक्त है पृथ्वी, गगन का मुक्त निर्मल नील आँगन।
खुल गयीं राहें, दिशाओं के गये खुल द्वार, बंधन,
प्यार के पथ पर चला संसार ले उद्गार नूतन।
पंथ है दुर्गम बहुत, पर
मैं बनूँगा राह, तुम चलना, अमर हो जायँगे हम॥2॥
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