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{{KKGlobal}}बह रही थी नदी की बाढ़ में-{{KKRachnaएक हिम्मत|रचनाकार=कुमार कृष्णडूब रहा था उसमें-|अनुवादक=एक हौसला|संग्रह=डूब रही थीं आस्थाएँ}}डूब रही थी विश्वास की{{KKCatKavita}}एक पुरानी इमारत<poem>देख रहे थे पूरा मंज़रअनगिनत लोगकिनारे पर खड़े होकरमेरे दायीं ओर खड़े आदमी ने कहा-'बहुत बूढ़ा है डूब भी जाए तो क्या फ़र्क़ पड़ेगाथोड़ा कम ही होगा धरती पर बोझ'जान पर खेलते हुएबायीं ओर खड़े एक नौजवान लड़के नेलगा दी नदी में छलाँगवह ले आया अपने कन्धों पर उठाकरएक बूढ़ा आदमीडूब रहा था जो-मनुष्यों की भीड़ के सामने।</poem></poem>
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