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|रचनाकार=कुमार सौरभ
|संग्रह=
}}
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<poem>
तुम्हारे लिए मिथिला का पान होना चाहता हूँ
आवारगी मे लातिनी अमेरिका
अनुशासन में जापान होना चाहता हूँ !
तंगहाल है
ख़तरे में है
डरा हुआ पिट्ठू गुलाम नहीं
ऐसा ही स्वाभिमान
ऐसी ही पहचान होना चाहता हूँ
मैं हो चि मिन्ह का वियतनाम होना चाहता हूँ ।
मेरी प्रगति को दुनियावी मानकों से मत मापना
इस होड़ में मैं शामिल नहीं
हासिल हो जीवन का कुछ
तो यही हो
मैं भूटान होना चाहता हूँ ।
अभावों में रहते हुए भी इसी ने हमें पाला है
हर जगह, हर समय, हर परिस्थिति में जूझता
मैं हाशिये का हिन्दुस्तान होना चाहता हूँ ।
यह सपनों का शहर है
और पंख नोच लिए गये हैं हमारे
बावज़ूद, किसी दूर गंतव्य के लिए
मैं तुम्हारी उड़ान होना चाहता हूँ !
उग आए मेरी चारो तरफ इजराइल कई फिर भी
फलिस्तीन मैं मेरी जान होना चाहता हूँ !
</poem>
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|रचनाकार=कुमार सौरभ
|संग्रह=
}}
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तुम्हारे लिए मिथिला का पान होना चाहता हूँ
आवारगी मे लातिनी अमेरिका
अनुशासन में जापान होना चाहता हूँ !
तंगहाल है
ख़तरे में है
डरा हुआ पिट्ठू गुलाम नहीं
ऐसा ही स्वाभिमान
ऐसी ही पहचान होना चाहता हूँ
मैं हो चि मिन्ह का वियतनाम होना चाहता हूँ ।
मेरी प्रगति को दुनियावी मानकों से मत मापना
इस होड़ में मैं शामिल नहीं
हासिल हो जीवन का कुछ
तो यही हो
मैं भूटान होना चाहता हूँ ।
अभावों में रहते हुए भी इसी ने हमें पाला है
हर जगह, हर समय, हर परिस्थिति में जूझता
मैं हाशिये का हिन्दुस्तान होना चाहता हूँ ।
यह सपनों का शहर है
और पंख नोच लिए गये हैं हमारे
बावज़ूद, किसी दूर गंतव्य के लिए
मैं तुम्हारी उड़ान होना चाहता हूँ !
उग आए मेरी चारो तरफ इजराइल कई फिर भी
फलिस्तीन मैं मेरी जान होना चाहता हूँ !
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