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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=गाँधी-भारती / गुलाब खंडेलवाल
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राजा राम अयोध्या के थे! हुए विदा जो उसको छोड़
त्रेता में ही! कृष्ण गँवा निज प्राण व्याध के शर द्वारा
चले गये सुरधाम! नहीं! तो फिर कैसे हमसे मुँह मोड़
बापू दूर चले जायेंगे प्रेम भुलाकर यह सारा!
गूँजेगी प्रार्थना-सभा कैसे न मधुर उन वचनों से!
मोहन की वंशी न गूँजती अब भी कालिंदी के कूल
शरद पूर्णिमा में! आतीं गोपियाँ न क्या कलियाँ खोंसे
आधी गुँथी हुई वेणी में, स्वर सुनते ही सुध-बुध भूल!
आज प्रतिष्ठित वह भी देखो जन-जनके अन्तरतर में
गोकुलपति-सा, गूँज रही है सत्य-अहिंसा की गीता
उर-उर में, प्रतिध्वनित आज उसकी गाथा ज्यों घर-घर में
युग-युग से प्रतिध्वनित हो रहे सीता-राम, राम-सीता
त्रेता का तापस, द्वापर का वही सारथी, कलि में आज
संत बना से गाँव-गाँव का पहने सित खद्दर का साज
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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
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राजा राम अयोध्या के थे! हुए विदा जो उसको छोड़
त्रेता में ही! कृष्ण गँवा निज प्राण व्याध के शर द्वारा
चले गये सुरधाम! नहीं! तो फिर कैसे हमसे मुँह मोड़
बापू दूर चले जायेंगे प्रेम भुलाकर यह सारा!
गूँजेगी प्रार्थना-सभा कैसे न मधुर उन वचनों से!
मोहन की वंशी न गूँजती अब भी कालिंदी के कूल
शरद पूर्णिमा में! आतीं गोपियाँ न क्या कलियाँ खोंसे
आधी गुँथी हुई वेणी में, स्वर सुनते ही सुध-बुध भूल!
आज प्रतिष्ठित वह भी देखो जन-जनके अन्तरतर में
गोकुलपति-सा, गूँज रही है सत्य-अहिंसा की गीता
उर-उर में, प्रतिध्वनित आज उसकी गाथा ज्यों घर-घर में
युग-युग से प्रतिध्वनित हो रहे सीता-राम, राम-सीता
त्रेता का तापस, द्वापर का वही सारथी, कलि में आज
संत बना से गाँव-गाँव का पहने सित खद्दर का साज
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