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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=प्रीत न करियो कोय / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[category:नज़्म]]
<poem>
'मिटे हों जो बन-बनके सपने कई
उन्हींमें न रखना मुझे, निर्दई!
कहीं बैठ जाना न लिखने किताब
सुना, शायरों की है आदत ख़राब
वे जीते हैं दुहरी यहाँ ज़िंदगी
कहीं दिल, नज़र है कहीं पर लगी
अलग उनके दिन हैं, अलग उनकी रात
निराली है दुनिया से हर उनकी बात
भले ही वे करते हैं सबसे निबाह
नहीं कुछ भी अन्दर की मिलती है थाह
मुझे डर है, लफ़्ज़ों के साँचें में ढल
न रह जाऊँ बनकर तुम्हारी ग़ज़ल
फिरूँ मैं न राधा-सी रटते ही नाम
कछारों में जमना की ही, मेरे श्याम!'
<poem>
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=प्रीत न करियो कोय / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[category:नज़्म]]
<poem>
'मिटे हों जो बन-बनके सपने कई
उन्हींमें न रखना मुझे, निर्दई!
कहीं बैठ जाना न लिखने किताब
सुना, शायरों की है आदत ख़राब
वे जीते हैं दुहरी यहाँ ज़िंदगी
कहीं दिल, नज़र है कहीं पर लगी
अलग उनके दिन हैं, अलग उनकी रात
निराली है दुनिया से हर उनकी बात
भले ही वे करते हैं सबसे निबाह
नहीं कुछ भी अन्दर की मिलती है थाह
मुझे डर है, लफ़्ज़ों के साँचें में ढल
न रह जाऊँ बनकर तुम्हारी ग़ज़ल
फिरूँ मैं न राधा-सी रटते ही नाम
कछारों में जमना की ही, मेरे श्याम!'
<poem>