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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=बूँदे - जो मोती बन गयी / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[category: कविता]]
<poem>
यदि तू कभी इस अरण्य में आयेगा,
तो यहाँ हर पेड़ के तने पर
अपना ही नाम खुदा हुआ पायेगा.
डाल पर बैठी हुई मैना भी
रो- रोकर तुझे बुलायेगी,
और उड़-उड़कर तुझे वे टीले
और घाटियाँ दिखायेगी
जहां मैं थका-हारा सो जाता था,
क्षण भर को तेरी कल्पनाओं में खो जाता था.
यद्यपि वायु-लहरियों से मेरे पद-चिह्न मिट चुके होंगे,
किन्तु तुझे वे रक्त-रंजित काँटें अवश्य दिखाई देंगे
जो मेरी पीड़ा के साक्षी रहे हैं,
वे नि:शब्द शिलायें अवश्य मिलेंगी
जिन पर मेरी आँखों के आँसू बहे हैं.
<poem>
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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=बूँदे - जो मोती बन गयी / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[category: कविता]]
<poem>
यदि तू कभी इस अरण्य में आयेगा,
तो यहाँ हर पेड़ के तने पर
अपना ही नाम खुदा हुआ पायेगा.
डाल पर बैठी हुई मैना भी
रो- रोकर तुझे बुलायेगी,
और उड़-उड़कर तुझे वे टीले
और घाटियाँ दिखायेगी
जहां मैं थका-हारा सो जाता था,
क्षण भर को तेरी कल्पनाओं में खो जाता था.
यद्यपि वायु-लहरियों से मेरे पद-चिह्न मिट चुके होंगे,
किन्तु तुझे वे रक्त-रंजित काँटें अवश्य दिखाई देंगे
जो मेरी पीड़ा के साक्षी रहे हैं,
वे नि:शब्द शिलायें अवश्य मिलेंगी
जिन पर मेरी आँखों के आँसू बहे हैं.
<poem>