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10:58, 4 मई 2017
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सिर्फ प्यार की जिन्दगी ही गुजरी तुम्हारे साथबाकी ज़िन्दगी नहींसदियाँ लगीं हमें जिन संस्कृतियों को बुनने में,सँवरने मेंसभ्यताओं का पत्तों, फूलों से रिश्ते ही आते हैंके आगे के परिधान देने, उम्र भर यादनग्नताओं को शालीनता उढ़ाने में,फिर भी विकास की सारी ज़िन्दगी नहींपरतांे को चीर करसभ्यता के इस धरातल पर, पर मोड़ पर,मन से माँसलताओं के जंगलों में सिमटकर रह गयाआदिम आदमी!निजी ज़िन्दगियाँ निरन्तर बनती चली गयींएक आईना अनावृत्त आचरणों का,ऐसी मानसिकताओं को फिर जरूरत ही कहाँ रहीकिसी सभ्य परिधान की?
एक दिन जब हमने ओससंगीत की मादक ध्वनियों, आगबहती रोशनियों में उभरतीं छवियों के बीच,धूप, चाँदनी, पराग को रैम्प पर एक साथ छुआनियोजित होड़ चल रही है सारी सार्वजनिकताओं के बीच,उस दिन हमें लगा जैसे हमारा प्यार से पहला परिचय हुआ,जब हमारी बाहों शालीनता अपना अस्तित्व खोज रही हैं इंच-इंच नपी चिन्दियों में सिमटे से लगे, सवेरे, दोपहरियाँ, शाम,प्यार नग्नता रास्ते खोज रही है कपड़ों की परिधियांे में एक-एक कर खोने लगे,वर्जनाओं से भरे समय कतरनों के आयाम,बीच!हमने साँसों में बाँट भी लिया, साँसों से बाँध भी लिया,वह अपरिमित सुख, जो हमें हमारे संचित प्यार ने दिया। मन सचमुच परिधानों के कई कोनों निष्पाप संपादन में बिखरी भी रही,बहतीभी रही, बरसों कोई वासन्ती बयार,रहती है एक स्थायी सावन ही था वोपुरुषजन्य पक्षपात की सामयिकी!जिसकी फुहारें हमें भिगोती रहीं बार-बारआधी दुनिया, औरतों के लिए,जो प्राणों कपड़े बुनने और सँवारने में स्थापित ही होकर रह गयी।लगी है,ऐसी एक बहार का नाम थे तुमआधी दुनिया,उम्र औरतों के पतझरों मेंकपड़े उतारने या निर्झर से भरी-भरी उम्र की शाम थे तुमउतरवाने को आतुर खड़ी है,सिर्फ प्यार की ज़िन्दगी ही गुजरी तुम्हारे साथ्बाकी ज़िन्दगी यहाँ अब निरा, निजी, नैतिक या निन्दनीय कुछ नहींहैफूलों से रिश्ते ही आते हैं उम्र भर याद यह खुल, सामूहिक नग्नताओं के सार्वजनिकसारी ज़िन्दगी नहींअलंकरण की घड़ी है!...
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