भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
अंबर के आंगन को देखो<br>
कितने इसके तारे टूटे<br>
जो छूट गये फ़िर कहां मिले<br>
पर बोलो टूटे तारों पर<br>
Anonymous user