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कव्वे / गगन गिल

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'''* तब बुद्ध ने एकत्र भिक्षुओं से कहा--"भिक्षुओ, कव्वा उड़ाने में समर्थ पन्द्रह साल से कम उम्र के बच्चे को श्रमण बनाने की अनुमति देता हूँ ।"
:::::::'''-विनय पिटक, महावग्ग, महास्कन्धक, 1-3-6 |
 
 
 
कोई नहीं रुकेगा।
 
 
जितनो को उड़ाओगे, सब चले जाएंगे। बैठ जाएंगे जाकर किसी दूसरे जन्म की
 
शिला पर। फिर से करने लगेंगे तुम्हारी प्रतीक्षा। एक होगा लेकिन जो कहीं नहीं
 
जाएगा। रुके रहने को अदृश्य हो जाएगा वह। तुम्हारे संग लगा रहेगा हर दम ।
 
धूप और बारिश में। स्मृति और विस्मृति में। ठंडे बिस्तर में जाओगे तुम और
 
गर्म कर रखी होगी उसने तुम्हारी जगह ।
 
 
सिर्फ़ किसी-किसी दिन तुम्हें शक होगा। रुक जाओगे तुम अचानक। आकाश के
 
नीचे। बीच पर्वत पर। जैसे कुछ पूछा हो किसी ने।
 
 
नहीं, यह स्मृति-पर्वत नहीं है। जो मांगते हैं उत्तर, वह दीखते नहीं हैं।
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