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घर / मनोज पुरोहित ‘अनंत’

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|संग्रह=थार-सप्तक-1 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
ढोइजणों ई हो
घर माणस रो
कांई मोल आटै आगै
कोरै छाणसरो।
घर, क्यांरो घर हो
ईंटां ही राड़ री
चूनो हो सुवारथ रो
भाठा हा बुराई रा
माणस ई कठै हा
डेरा हा कसाई रा।
साची बता
कठै ही नींव
प्रीत री
खाई ही रीत री
कठै हा
सैंथीर निग्गर
जाबक थोथा हा
माणस ई मोथ हा।
कियां ढबतो घर
जकै में रैवंतो डर
हरमेस पड़ण रो
चौखो होयो
जे पड़ग्यो घर।
</poem>
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