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अरदास / प्रहलादराय पारीक

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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
म्हारै, च्यार साल री झोटड़ी,
लागी कोनी आस।
माऊ जा‘र करी,
भौमियै जी रै,
अरदास।
हे म्हाराज छाछ री
नारळी सर करज्यो।
खोलड़ी पाडकी ही ल्यावै,
इस्या जोग करज्यो।
थारै कड़ाही कर स्यूं।
बां रै बिदेसी नस्ल री,
कुतड़ी खातर,
बिदेसी नस्ल रो कुत्तो,
घरां ल्यार बांध्यो,
भौमियै जी रै
नारेळ चाढ्यो
अरदास करी,
म्हाराज म्हारली कुत्तड़ी
कुकरड़ी ना ल्यावै।

</poem>
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