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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
छात री कड़ी
अर
मांचै री ईस,
दोन्यू जाड़ पीसै,
आदमी माथै,
एक नै टांग दी
एक नै दाब ली
पण आदमी
टंग्योड़ो अर दब्योड़ो
दांतरी काढै।
</poem>
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