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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
तावड़ै दियो पुराणो धान
दाळ चुगती मा
एक उबासी लेवै
घणा दिनां पछै

काको सिकाया भूंगड़ा
ताळ री पाळ माथै बैठ‘र खांवता
आवण लागी यादां
गुड़ आळा दिनां री डळ्यां

रामलीला रै पुराणा मैदान में
रातै घणो बरस्यो मेह
गोडां तांई कादो ई कादो

पट्टेदार पजामै रै फाटेड़ै टूकड़ै सूं
टाबर पूंछै आपरी साइकिलां
चिड़कल्यां री चिलबिलाट स्यूं पै‘ली
सड़क माथै सूणीजै दूधियां री भीड़

रोज दिनूगै छोटकी करै बातां फूलां री
कारखानै रो सायरन दडूकै
चुप कराय न्हाखै
</poem>
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