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सीव अर पीड़ / गौरीशंकर

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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
करसो हाड़ी काटै हो
दांती सूं
आंगळी कटगी
पाटी बांधी
कैई दिना तांई
पीड़ रैई।
घर रा टाबरां नै
बापू रै लाग्योड़ी
पीड़ माथै
घणी सीव आवै।
अेक दिन करसो
खेत में जांटी
काटण लाग रैयो हो
टाबर साथै गयोड़ा हा
बापू सूं बोल्या
जांटी नै क्यामी काटो हो
इणरै किती पीड़ हुवै
थांनै इण माथै
सीव ही नी आवै
पैली आळी दांती सूं
लाग्योड़ी बात याद दिराय दी
बापू टाबरां री
सीव अर पीड़ री
बाण सुण’र
मून धार लियो।

</poem>
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