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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
धोबो भरयो पाणी रो
आंख्यां सारू
छाबका मारू
सांयत मिळै, हिवड़ै नै
धोबो भरयोड़े पांणी में देख्यो
थूं हांसती दिखी
थूं देखती रैयी टकटकी सूं
म्हनै
म्हूं जुगत करयो
पांणी सूं धोबो भरयोड़ो रैवै
पण रोक’र नीं राख सक्यो
पांणी नै
धोबै में
आंख्यां सारू।
</poem>
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