भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उगामसिंह राजपुरोहित `दिलीप' |अनुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=उगामसिंह राजपुरोहित `दिलीप'
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
समै आपरै इसारां माथै
मिनख नै नचावै है।
किणीं नै बणावै किणीं नै मिटावै है
ज़िंदगी री कैड़ी-कैड़ी कवितावां बणावै है।
इण रै साथै को चालै
पार उणां री पड़ जावै
जको चालै कोनी साथै इण रै
ज़िंदगी मांय फोड़ा पावै है।
इण री धारा जाको जाणै
सफल वो हो जावै
मिनख थारा मिनख जमारां
पछै बाट किणी जोवे है।
ज़िंदगी है ओ मोटो रस्तो
जिण मांय कांटा घणां सारा
कांटा आगळिया ही
पार पड़सी मिनख जमारा मांय।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=उगामसिंह राजपुरोहित `दिलीप'
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
समै आपरै इसारां माथै
मिनख नै नचावै है।
किणीं नै बणावै किणीं नै मिटावै है
ज़िंदगी री कैड़ी-कैड़ी कवितावां बणावै है।
इण रै साथै को चालै
पार उणां री पड़ जावै
जको चालै कोनी साथै इण रै
ज़िंदगी मांय फोड़ा पावै है।
इण री धारा जाको जाणै
सफल वो हो जावै
मिनख थारा मिनख जमारां
पछै बाट किणी जोवे है।
ज़िंदगी है ओ मोटो रस्तो
जिण मांय कांटा घणां सारा
कांटा आगळिया ही
पार पड़सी मिनख जमारा मांय।
</poem>