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|रचनाकार=राजेन्द्रसिंह चारण
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
आज मानखौ
मानखां ने‘ई खावै है
फेर भी ई नै रत्तीभर
सरम नीं आवै है
आंख्यां री लाज मिटगी
संवेदणा
व्यावहारिकता गिरगी
अबै थूं ई बता
म्हारी गौदड़ी
कियां लिखूं मैं
प्रीत रा गीत।
</poem>
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आज मानखौ
मानखां ने‘ई खावै है
फेर भी ई नै रत्तीभर
सरम नीं आवै है
आंख्यां री लाज मिटगी
संवेदणा
व्यावहारिकता गिरगी
अबै थूं ई बता
म्हारी गौदड़ी
कियां लिखूं मैं
प्रीत रा गीत।
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