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|रचनाकार=नरेश मेहन
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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
आओ देखांण
आपां धरती माथै
एक सुरग बणावां
ढूंढ‘र ल्यावां
कठै ई सूं
एक किसनजी
एक सुदामो
फेर घालां उणां साथै भायला।

थोड़ी-थोड़ी लेल्यां
उधार में हांसी
ब्याज माथै
घणो सारो प्यार
जिण नै चुकांवतां भी
आणंद आवै अपार।
ढूंढ्या तो
कांई ठाह
मिल ई जावै
कबीर भी
आओ पण पैली
रहीम रो धागो बचावां
प्रेम बधावां।

आओ उतारां धरती
तुलसी रो राम
राम री सीता
राधा-मीरा
नानक-ईसा
बुद्ध-महावीर
बुल्लेषाह-फ़रीद नै भी
काळजै ढाळां।

ढूंढ्यां तो
मिल ई जासी
नानक सा संत
आओ पण आपां
गुरू गोविन्द भांत
बाज लड़ावां।

बादळां सूं
बातां करां
नद्यां नै हैला पाड़ां
समन्द नै बतळावां
पुहुपां अर टाबरां साथै
रम्मां-हांसां
खुद खिल जावां
आओ आपां
धरती माथै सुरग बणावां।
</poem>
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