Changes

देता है अभिमान को, रोज़ नया आकार।
वो पानी पाता नहीं, कभी नदी का प्यार।।
 
आज देखना है तुझे छूकर ओ तकदीर !
उभर जाए इस हाथ में, शायद नई लकीर।।
 
रंग फूल ख़ुशबू कली, था मेरा परिवार।
जाने कैसे हो गए, शामिल इसमें ख़ार।।
 
शाखों से तोड़े हुए, चढ़ा रहा है फूल।
क्या तेरी ये आरती, होगी उसे कबूल।।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,461
edits