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|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
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|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
वो खो गया
ठीक उसी समय
जब वो मिल रहा था
वो खो गया
ठीक वैसे ही
जैसे खो जाता है
ग़ज़ल का कोई मिसरा
समय से कागज़ पर न उतरा तो

कागज़ पर कहाँ उतर पाती हैं
जीवन की हर ख्वाहिशें,

मैं भूल जाऊंगा उसका खो जाना
शायद उसे भी,
किन्तु याद रहेगा युगों तक
उसका मुझमें उतरना

जैसे गिरती है बिजली
किसी दुधारू पेड़ पर !
</poem>
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