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|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
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|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
मुझे अच्छे से नहीं पता कि
सीने के अन्दर ठीक किस जगह होता है कलेजा
कहाँ होते हैं प्राण
और कहाँ होती है आत्मा
पर मुझे ठीक से पता है
कैसे स्पर्श करती है तुम्हारी आत्मा
मुझे ठीक उसी जगह
जहाँ सबसे ज्यादा सक्रिय होता है जीवन
और जीवन का कारोबार
ध्वनियाँ हो सकती हैं मन का खेल
पर स्पर्श ... उसे तो पहचानता हूँ मैं आदिकाल से
जैसे शरीर पहचानता है ऊष्मा को
भूमि... जल को
भूख ...अन्न को
और प्राण ....तुमको

मत कहना कभी
मैंने तुम्हें देखा नहीं
छुआ नहीं
जाना नहीं
मैंने जिया है तुमको अहिर्निशि
अपने केंद्र में अविछिन्न
जैसे जीव और आत्मा
जिसमें मैं जीव हूँ
और तुम इसकी आत्मा
जीवन इसी संयोग का नाम है ...!
</poem>
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