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|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
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|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
हर चीज़ की एक सीमा होती है
हर चीज़ नहीं.... सीमा केवल पदार्थ की होती है

और दर्द ?

अगर पदार्थ के लिए है तो सीमा है
प्रिय के लिए है तो निस्सीम,

शरीर और उसके कर्म
धरती और दिखाई देने वाला जगत
सब पदार्थ हैं इसीलिए इनकी है एक सीमा,

आकाश
मन
और प्रेम... ये हैं अपदार्थ और असीम
......
अच्छा एक बात बताओ ;
मुझमे जो पदार्थ है वो ख़तम हो जायेगा जब
तो क्या मैं निस्सीम हो जाउँगा ?

तुम पदार्थ के चिंतन से मुक्त होकर अभी निस्सीम हो सकते हो
.......
हम्म्म्म
अच्छा बस एक आख़िरी बात ...
वह कौन सी क्रिया है जिससे इन्सान पत्थर में बदल जाता है

प्रेम
.....
क्याआआआआ ??

हाँ
जो शक्ति पत्थर को इंसान बनाती है
उसी का असंतुलित व्यवहार इन्सान को पत्थर भी बना सकता है
बस एक फर्क है ...

क्या ?

ऐसे लोग दुबारा इंसान नहीं बन पाते फिर ,
भीतर ही भीतर तरसते हैं प्रेम को
मगर अपनाने से डरते हैं,
ठोकर खाए लोग
ठोकरें ही देते हैं बदले में .... !
</poem>
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