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|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
जो प्रेम का नाम लेते हैं,
दुहाई देते हैं,
प्रेम की महिमा का बखान करते हैं
पा लेना चाहते हैं
कुछ न कुछ
किसी न किसी बहाने
मैं वही हतभाग्य हूँ

ईश्वर और प्रेम
एक हैं
एक ही है
इन तक पहुँचने का तरीका
अकारण ... बिना हेतु
'सम्पूर्ण समर्पण' !

</poem>
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