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|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
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|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
महसूस करता हूँ वैसे ही
तुम्हें मैं
जैसे जीवन महसूसता है
धरती को
जैसे धरती महसूस करती है जल वायु ऊष्मा और आकाश को
नहीं जानता कि जीवन विहीन धरती कैसी होगी
पर धरती के बिना जीवन अकल्पनीय है
जैसे अकल्पनीय है बादल के बिना बरसात
प्रकाश के बिना सूर्य
गुस्से के बिना तुम :)
और तुम्हारे बिना मैं और मेरी कवितायें !

एक दिन, जब चाँद सालाना छुट्टियाँ मना रहा होगा ...
मध्यरात्रि में सूरज होगा ठीक सर के ऊपर
तारे उछल कूद रहे होंगे उसकी ठंढी सतह पर
इससे पहले कि सूरज सुबह की पाली के लिए गरम होना शुरू हो
तुम आ जाना चुपके से
साथ चलेंगे घूमने हकीक़त के आसमान तक
क्योंकि सपनों पर अब बहुत ज्यादा यकीन करना
खुद को धोखा देना लगता है
तुम सूरज के पेट में गुदगुदी करना
मैं करूंगा रखवारी - इन खुशी भरे अद्भुत पलों की ...
कम्बख्त बार बार हाथ में आकर छटक जाते हैं

इस बार तुम वहाँ तक चलोगी न ?
</poem>
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