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|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
जिस विज्ञान ने हमें मिलाया था
अंततः उसी ने छीन भी लिया
एक फोन
एक मेल
और बस नीला गहरा आसमान
जिसका कहीं कोई ओर छोर नहीं
मैं चाहता हूँ केवल इतना
कि
मेरे मरने की खबर
तुम तक पहुँचे
और तुम्हारे न रहने की मुझ तक
अगर तुम्हें लगता है कि
मुझे इतना भी मिलने का हक़ नहीं
तो तुम बेवफा हो !
</poem>
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