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|संग्रह=निरमल वाणी / निर्मल कुमार शर्मा
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<poem>
बिन बतलाया बिदा हुई क्यूँ माँ म्हारी
हुयो कियाँ बेदरदी ऐ पालणहारी !!

गोद्याँ रो कर पालणियो झूला देती
चेप्याँ हिव रे पास, कदी काँधा लेती
नैणा री बोली पढ़ म्हासूं बतलाती
लड़ा-लड़ा के लाड़, जो म्हाने दुलराती

बिन फेरया माथे हाथ, गयी क्यूँ माँ म्हारी
हुयो कियाँ बेदरदी ऐ पालणहारी !!

जद-जद बगत बुरो आयो, म्हे घबराया
तूँ भी बैठ्यो रह्यो, प्रभू मीच्याँ आँख्यां
जद निजरां फेरी, समधी-संगी-साथ्याँ
जिण माथे धरियो हाथ, सदा बण के छायाँ

छोड़ गयी क्यूँ साथ, आज बा माँ म्हारी
हुयो कियाँ बेदरदी ऐ पालणहारी !!

जिण ओढ़णिये छाँव, नींद सुख री पाता
जिण ने मन री पीड़ सुणा, थ्यावस पाता
हिव रे कोणे जिण री याद सदा पळसी
एक बात पण मन में हर वेल्याँ खळसी

बिन बोल्या मन री बात, गई क्यूँ माँ म्हारी
हुयो कियाँ बेदरदी ऐ पालणहारी !!

</poem>
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