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|संग्रह=निरमल वाणी / निर्मल कुमार शर्मा
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<poem>
आभै रा आंसू ढळक्या
धरा ताकती रही खडी
बायरियो व्है मौन ठम गयो
क्यूंक'र आयी अस्यी घडी

कुण जाणी के जिण डाळी री
कमल गुलाबी पुश्प दिया
उण डाळी नै तोड के माळी
बाग उजाडी खुद ही ईयां

धूजी होसी बै आंगळियां
दंताळी भी रोई होसी
निठुर हाथ उण माळी रा
जद डाळ हरी काटी होसी

रो-रो भाटा बण्या नैण भी
देख नैण जो न रोया
नींद उडा दूजे नैणां री
नैण आप जो खुद सोया

जिण नैणां ना जोत नेह री
कुण आसै करै किण पाण कहो
किनै ओळभो दे कोई
अर किण सूं करै जबाब कहो
सरजक ही संहारक व्है तो
कुण किणसूं करै हिसाब कहो

</poem>
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