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डाळी बाई / आशा पांडे ओझा

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<poem>
कैड़ो निराळो
लखावे है हेत
ऐ आंटी डोरा कांगसी भी
लिखणो चाऊं
जद-जद डाळी माथै
कमती पड़ जावै
सबदां रो अखूट भंडार
रामा धिणयां सूं
उण रो यो अणूतो हेत
कांइ हो रिस्तो
बायली,भगत,
दासी,आतमा अर सरीर!
क "रामा" सूं पेली
तज दिया वा आपरा प्राण
धनभाग थारा डाळी
क रामा सूं लागो थारो हेत
धन भाग म्हारा डाळी
लगा सकी मैं म्हारे माथे
थारी समाधी री रेत

</poem>
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