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जूण जातरा / संजय पुरोहित

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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
मिरतू जातरा
रेलगाडी री भांत
टेसण-टेसण पड़ाव
जंक्सन ठिकाणां
भाजता रूंख
छूटतो कडूम्बो
धूळ रा बादळ
विचारां री झड़ी
बणता बिगड़ता
निजर सूं दूर उड़ता
आस रा धोरा
जूण रा गेड़ा
पुळ-अंधड़-सुरंग
पण फेर भी आस
सांतरी आस
कै म्हारी जातरा होवैली पूरी
पूरो है ओ म्हारो विसवास
जिनगाणी री आ छुक-छुक
म्हारी जूण चौपड़ी में
मांडैली आगै रो ठिकाणों
बो ठिकाणों
म्हारै विसवास रो।

</poem>
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