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और देखता रहता हूँ मैं। <br><br>
सडको सड़को पर धूप चिलचिलाती है<br>चिडिया चिड़िया तक दिखायी नही देती<br>
पिघले तारकोल में<br>
हवा तक चिपक जाती है बहती बहती,<br>
सिर्फ़ कल्पनाओं से<br>
सूखी और बंजर जमीन ज़मीन को खरोंचता हूँ<br>
जन्म लिया करता है जो ऐसे हालात में<br>
उनके बारे में सोचता हूँ<br>
कितनी अजीब बात है कि आज भी<br>
प्रतीक्षा सहता हूँ। <br><br>