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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
कुमाणस बेटा
बूढ़ै बारै
मा बाप नै
घरां सूं काढै
ऐ कळजुग रा
पूत है
जिण डाळी माथै बैठै
उण डाळी नै बाढै।

</poem>
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