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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
थूं
आथूंणै खेत गई
बेलड़ी ल्यावण
अर हूं गयो आगूण
रेवड़ चरावण
थां सूं नीं उंचीजी
बेलड़ी री पांड
अर म्हां सूं
घिरयो नीं रेवड़
थां सूं छूटै नीं बेलड़ी
अर म्हां सूं
छूटै नीं रेवड़
थूं ई बता
आपां ओज्यूं
कद मिलस्या
आपणी पुराणीं ठोड़।

</poem>
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