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देसूंटो-2 / नीरज दइया

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सांवरा !
सांस री गळाई
क्यूं रची आ दुनिया ?

छूट परी सांस-
कठै सूं आवै ?
छूट परी सांस-
पाछी कठीनै जावै ?

कांईं ठाह
सांकळ सांस री
कद तूट जावै
कद छूट जावै

आवै जद सांस
रूक नीं सकै
निकळ परी
जावै पाछी बारै

जाणूं पूग्यां ई सरै
सांस री कोर माथै

अमर नीं हुवै सांस
फगत थूं ई जाणै
कद आवैला
सांस में सुमेर सांवरा
इण री ठाह हुवै
अर ठाह नीं हुवै

मारग सुपनां रो
बगै साथै सांस रै
का आखती-पाखती चालै
आगै-लारै सांस रै
का साथै-साथै सांस रै

ओ मारग
थम नीं सकै
ठळ नीं सकै
इण री ठाह हुवै
अर ठाह नीं हुवै

सगळा रा सगळा मारग
अंतपंत रळ जावै
छेकड़ मारग अेक-
आगोतर !

टोळै सूं टोळूं कींकर
म्हैं टळ नीं सकूं
टोळो फगत बारै नीं
मांय है म्हारै

भाग रै ओटै
मंड्योड़ी कुण बांचै
कितरी है सांसां
म्हारी सांस री

उतरै दीठ रै आंगणै
सांस रै साथै साथै
अेक आभो
अेक धरती
इण री ठाह हुवै
अर ठाह नीं हुवै

थारै किणी मंतर रै पाण
छांय-मांय
अलोप हुयग्यो अेक अरूप

ओलै-छानै हा
मांय म्हारेै
फगत कीं सुपना म्हरा

थारै सूं परबारो
म्हैं नीं आवतो
इण धरती माथै
अर नीं ओळखतो
म्हारै आभै नैं

बीज म्हनै धार्यो-
अरूप !

धरती आभै सूं मांग्यो-
रूप !

अरूप सूं पैली
कांई हो कोई रूप ?

आंख सूं अदीठ
रैवै अरूप

बगत रै परवाण
आवै बारै रूप
सांस-सांस लावै रूप

सांस-सांस साथै
आवै-जावै रूप

मा कैवै-
रूप-अरूप
सांसां रो सिरजक
अेक सांवरो
बो अेक है !
अर उगरी
नीं हुवै गिणती !!

गिणती कानी-
सांसा री
सुपनां री
अर तारां री

जद-जद तूटै
कोई तारो
बतावै मा-
अकारथ नीं हुवै
किणी तारै रो
आंख्यां सामीं तूटणो

मा कैवै-
बतावै हींडतो तारो
अणमाण आभै नैं धरती
सांसां नैं सुळझाव
अर सुपना नैं मारग

सुपनां मांय रैवै
सांस म्हारी
अर सांस मांय रैवै
म्हारा सुपनां लुक्योड़ा

सुपनां अर सांच मांय
घणो आंतरो नीं हुया करै
सुपना ई हुया करै सांच
अर सांच रा ई’ज
आया करै सुपना

इण धरती माथै
अेक आभो है
ऊंचो तणियोड़ो
आ धरती दीठ्यो
सुपनो म्हारो
का आभो दीठ्यो
सुपनो म्हारो

धरती ई उछाळ सकै
किणी वेग सूं
कोई बीज

कोई बीज
पण नीं झालै
कदैई आभो

आभो उतरै-
धरती री पुड़त-पुड़त
मिलै सांस सूं सांस
बीज सूं बीज
अर जलमै-
अेक अबोट सांच
अेक अबोट सुपनो

धरती सदीव हुवै
जलम री देवाळ

जिकी थारै बीज नैं
बा बाजै धरती

किणी बीज खातर
घणी जरूरी हुवै
कोई अेक धरती

मा कैवै-
स्सौ कीं धरती मांय है
कोई कोनी परबारै

पण म्हारा कोई सुपना
केई-केई सुपना
अधर हांडता
टंग्योड़ा है-
आभै मांय !
</poem>
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