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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंजन आचार्य |अनुवादक= |संग्रह=था...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=कुंजन आचार्य
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
थोड़ो गीत, थोड़ी कविता
थोड़ी मन री आसा में।
मारां मन री हंगळी बातां
लिक्खी में हर भासा में।
सपना में है आखर पोथी
लैण-लैण में हेत भणूं।
हिचकी चालै रात-रात भर
हेत लिखूं अर हेत भणूं।
हां मूं बोलूं, वा मूं बोलूं
मन री भासा भण जाऊं।
हां चालूं हूं, हां रपटूं हूं
मंगरा डूंगर चढ़ जाऊं।
थारां हेत रा सपना देख्या
सपना रो ही चबूतरो।
हेत मले तो सच हो जासी
मन में नाचै कबूतरो।
</poem>
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|रचनाकार=कुंजन आचार्य
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
थोड़ो गीत, थोड़ी कविता
थोड़ी मन री आसा में।
मारां मन री हंगळी बातां
लिक्खी में हर भासा में।
सपना में है आखर पोथी
लैण-लैण में हेत भणूं।
हिचकी चालै रात-रात भर
हेत लिखूं अर हेत भणूं।
हां मूं बोलूं, वा मूं बोलूं
मन री भासा भण जाऊं।
हां चालूं हूं, हां रपटूं हूं
मंगरा डूंगर चढ़ जाऊं।
थारां हेत रा सपना देख्या
सपना रो ही चबूतरो।
हेत मले तो सच हो जासी
मन में नाचै कबूतरो।
</poem>