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उपरमाळ / मोहन पुरी

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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
सिणगार दैखनै
बिणजारी रो
उतर आवै हो सूरज...
मेनाळी री जळमती ठौड़‘प
अर न्हावै हो चान्दो
तिलस्वां रा कुण्ड मं...।
पण ईब
लगोलग भूमाफिया सूं
कर रयी है बंटवाड़ो
करसां री जात
आपणा बाप-दादावां री
खेत लड़ाई रो...।
सुणज्यो!
पथिकजी, वर्माजी
थहांका ऊपरमाळ रो
ईब कांई हाल हो रियो है...
अेक बिणजारो दारू पिवनै
गबल्या भिजो रियो है...।
थैं करम कर्या पण
करबा री सीख न्ह दी ...
डोफा डोपर खांच रिया
नगोजा करम बांच रियो
थैं रावळा सूं लड़ता रिया...
अर म्हैं कुरळो कर‘र भाटा टांच रिया।
रिपया रो करज, च्यार आना रो ब्याज
अण बरस होग्या पूरा साठ...
हरख अर उमाव सूं देखो
आ है नुवीं ऊपरमाळ
.... भाठां री टकसाळ।

</poem>
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