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नाथंणो / मोहन पुरी

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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
जठा तांई पड़यो रैवै
नाथंणो
छूला रै नैड़ै....
व्हा नचीती रैवै
आग अर
आग री तपत सूं...।

</poem>
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