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Kavita Kosh से
परदे हटाकर करीने से<br>
रोशनदान खोलकर<br>
कमरे का फनीर्चर फर्नीचर सजाकर<br>
और स्वागत के शब्दों को तोलकर<br>
टक टकी बाँधकर बाहर देखता हूँ<br>
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