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|संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
आं तपतै दिनां रो
कोई जोड़ अर तोड़
ढाण्यां में बसण आळा
सांपड़तै जाणैं
झूंपड़ां में बिछा बेकळा
छिड़क पाणीं
बणावै झूंपड़ै नै सालम कूलर
झूंपड़ै रै मोखां सूं
पछै जे चालै हेमाणी पून
तो सुरग ई सरमा मरै।

खेत री रेत में
ऊभी खेजड़ी रै
बांध छागळ
तळै बिछाय तप्पड़
उतरै जद नींद
जणां लखावै
जाणै
ऐकर फेर
बणग्यो बीन्द।

</poem>
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