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भींत / हरीश हैरी

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|संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
चौभींतै नै
देख'र
खुस होवंतो घर
आँगणैं बिचाळै
निकळती
भींत नै देखर
टूटग्यो घर!
</poem>
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