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क्यूं / हरीश हैरी

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|संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
सगळा जाणै
करै जको ई भरै
बै भरण लाग रेया है
फैर भी...
बै करण लाग रेया है।
</poem>
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