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|संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
जका देवता
सवा रिपीये रै
परसाद में
हो जांवता झट राजी
बै इज देवता
उठग्या
सौ-सौ कोस दूर
सवा मणी सूं ई
नी आया नेड़ै
ओ फरक है फगत
आछा-माड़ा दिनां रो!
</poem>
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