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|रचनाकार=शक्ति प्रकाश माथुर
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|संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
पाड़ोसी सूं लड़ पड़्यो, बीं दिन ‘निजामलो तेली’।
तीन च्यार खाई बठै, च्यार पांच मेली।।
पछै खुद री गलती जाण।
घरआळी रो कैणो मान।।
राजीपो करण नै गयो, गुड़ री ले’र भेली।।

माचै ऊपर बैठ्यो बारै, दादो करै तावड़ी।
माचै री सेरू रे साथै, बंध्योड़ी ही गावड़ी।।
चील गाड़ी एक आगी।
गा बिचर’र भागी।
सणै दादे माचै नै, ले ज्यार पटक्यो बावड़ी।।

राजपथ पर बगतां थकां, हाजत होगी सेठ रै।
भींचा भींची करबा लाग्या, हाथ बांध्या पेट रै।
दीसी कोनी पड़ती पार।
ढीला होया आखिरकार।।
लांग खोल धोती री बैठ्या, ओलै इण्डिया गेट रै।।
</poem>
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