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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
(1)
मनोविज्ञान री क्लास मैं, पूछयो मास्टर भागै
बनवास सिर्फ राम नै होयो, सीता क्यूं गयी सागै
बोल्यो चेलो लहरी
मौको हो सुनहरी
बहू रो खटाणो दोरो हो, सास रै आगै।

(2)
सुनैरी लाल सोनी रैया करता फरीदकोट
आखै जीवन बेच्यो सोनो रळा-रळा'र खोट
गया जणा मर
द्वादसै ऊपर
गरुड़ पुराण पर चढाग्या लोग चूरण वाळा नोट।

(3)
छोरी रो ब्याव कर्यो मंगतराम 'मुनाफा'
कई साथी बांध'र आग्या जोधपुरी साफा
मंगत मळतो रैग्यो हाथ
किसमत कोनी दियो साथ
साफै हाळा नै पकड़ाग्या लोग बान रा लिफाफा।

(4)
गंजे पाड़ौसी सूं राड़ राखतो 'प्रसून'
बदलो लेवण खातर बीं'रै चढेड़ो हो जनून
मंदर जणा जातो
मन्नतां मनातो
हे भगवान! गंजै नै दे तीखा सा नाखून।

(5)
नौ बच्चां रो बाप हो बाबूसिंह 'गगरेट'
घरआळी नै पोणी पड़ती रोटियां री पूरी जेट
गांव में मशीन लागी
घरआळी री किसमत जागी
एक रोटी पो'र बीं री करवा लेती फोटोस्टेट।
</poem>
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