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भौम चावना / इंदिरा व्यास

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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
बधती आबादी
सुकड़ती सड़कां / सुकड़ता मारग
जग में ऐ चाळा
दिनोदिन बधता जावै
इण सारू
ऐ लाम्बा चवड़ा राजमारग भी
सुकड़ता-घटता जावै
आ भौम री चावना ई
खोटी घणीं हुवै
घर रै आगै नित नूई चौकी
चौकी आगै कमरो / कमरै आगै चौकी
बणती ई जावै
ओ आ चावना ई बणावै
छेकड़ बा ई चौकी
चौकी दर चौकी एक दिन
लूंठा भवन बण जावै
चौकी पछै और आगै बणैं
और आगै बणै!

आ भौम चावना ई
एक दिन रचै महाभारत
जिण में सगळा लड़ै
भाई-भाई ई नीं बचै।
</poem>
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