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|रचनाकार=इंदिरा व्यास
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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
कुण कैवै
कळां मिनख हेत सारू
बणी अर तणी है
कळां री सोरफ सूं
दोरफ ई बधी है
मिनखपणैं सारू

कळां रोपै
जुध अर जुध
भाई-भाई सूं / देस-देस सूं
कळां रै जोम ई बधै
जग में आतंकवाद
लूंटीजै पौलिंग बूथां माथै
लोकतंत्तर री देवी

कळां ई भख रैई है
बैन-बेटी / भूआ-मासी
अर ऐड़ा ई कई दूजा नाता-रिस्ता
कूखां में आवण सूं पैली अर पछै
कळ-कळ नीं
कोई राखसियो बळ है
जिको बधतोई जाय रैयो है
मानखै नैं लगोलग भखतो।
</poem>
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