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|रचनाकार=वाज़िद हसन काज़ी
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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
ऊठगी आंगणै रै
बीचौ बीच
भींतां

मा-बाप रौ होयगो
बंटवाड़ौ
नीं सुहावै
अबै भाइपौ

नीं रैयी जग्यां
बठै कीकर
रमै टाबर अेकण साथै

आंगणै रौ घेर-घुमेर
रूंख
फैलावै आपरा पानड़ा
इण आंगणै सूं
बिण आंगणै तांई

देवै न्यूंतौ
भाई नै भाई सूं मिलण रौ
चुपचाप
पण आज कुण सुणै
कुण समझै
हेत री भासा
बदळगी
रिस्तां री परिभासा।
</poem>
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