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|रचनाकार=वाज़िद हसन काज़ी
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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
पैली प्रीत
नीं भूलीजै
अेक-अेक पल छिन
अेक-अेक दिन
बीत्यौ
अेक-अेक बरस ज्यूं

बात पुराणी होयगी
पण अजै
साव नुवी है
म्हारी प्रीत
जाणै आज री
इण सायत री

भलां ई नीं दरसायी
थां रै सांमी
उण नैं
पण है म्हनैं
पूरौ विस्वास
के
थां जद ई जाणता
म्हारै मन री बात
अर आज ई जाणो
थां भलां ई मत कैवौ
पण थांरा
हिरणी रै गळाई मुळकता
डाबर नैण
सै की कह देवै
म्हनै

अर म्है सहज सुण लूं
थांरै नैणा रा
अण बोल्या बोल।
</poem>
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