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|रचनाकार=मोनिका शर्मा
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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
सासरै री कांकड़ मांय पग धरतां ईं
नवीं बीनणी का भाग री बातां चालगी
चोभींती हेली की साळां रा
ओडालेडड़ा कुवांड़ां रै ओलै बी
बींका चोखा-बुरा पगफेरा री
घणी'ईं चरचा चाली
आंडै-बांडै सगळा बतळाया
बिकी तगदीर का लिख्योड़ा लेखां नै
बाँचबां को जतन घर-बार, गाँव गुवाड़ का
सगळा'ईं मिनख करियो
पण बातां तो हुई'ई कोनीं
बां गुण संस्कारां अर पोथी पानड़ां री
बीनणी री बी पढाई-लिखाई की
जिका गुणां नै हेरतां-हेरतां
सासरै आळा बीं का पीर का
फळसा ताणीं आ पूंच्या
अर बा बावळी बी दिन की कह्योड़ी
बातां नै सांची मान'र
ठाडा जतन सूं संभाळ'र
सागै बांध ल्याई
नवां रिस्ता-नातां री समझ
पुराणी पोथ्यां एक कलम
अर थोड़ी सी स्याई।
</poem>
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