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|रचनाकार=मोनिका शर्मा
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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
पीर कै आंगणैं मांय
चिड़कली सी चिंचाती लाडली
मांडां तळै आंवतां'ईं
टाबरपणों छोड दियो
अर सात फेरा लेवतां'ईं
सुघड़ समझ आळी बीनणी बणगी
बणीं-ठणीं अर सिणगार कर्योड़ी
दरपण रै साम्हीं बैठ्योड़ी
जद घणां गौर सूं निरख्यो
बा आपारा रूप नैं, तो
अंतस मैं झांकणै लागी
फेर गिण-गिण'र बातां बिचारण लागी
तो बीं नैं बीं को ई रूप फीको सो लाग्यो
अर बा सोच्यो
कै आं सोना री सांकळां में
म्हारी मुळकती-ढुळकती
छिब कठै गमगी
सोवणां मंडाण आळा
गैणा-गांठी में बंधगो
म्हारो डील अर
आत्मा जाणै किण पासै
खिंडगी...।
</poem>
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